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उत्तराखंड में जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क लगभग 300 बाघों का घर है, जो इस लुप्तप्राय प्रजाती को रहने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान करता है। ये पार्क कई लोगों को आकर्षित करता है जो इन भव्य जानवरों को देखने के लिए यहां आते हैं।
ये जानवर जितना खूबसूरत है उतना ही खतरनाक भी है और इसी वजह से कई बाघ मारे भी गए हैं। भारत में आज केवल 3,140 बाघ ही बचे हैं, जबकि 200 साल पहले तकरीबन 40,000 बाघ हुआ करते थे। बाघों की आबादी में गिरावट का मुख्य कारण है अवैध शिकार और विदेशी जानवरों का अवैध व्यापार।
अब हम बाघों को सुरक्षित रखने की अपनी पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन मुश्किल तब आती है जब इंसानों और बाघों में से किसी एक को चुनना पड़े। ऐसे मामले में आपके हिसाब से क्या किया जाना चाहिए? इस अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर हमारा वीडियो देखें और कमेंट्स में अपनी राय बताएं!
एक अलग नजरिया , @RTDocumentary_India के साथ!
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❓क्या आप जानते हैं?
निर्देशक वी शांताराम ने हिंदी और मराठी में कई फिल्में बनाईं। यहां तक कि चार्ली चैपलिन ने भी उनके काम की प्रशंसा की। उन्होंने प्राचीन मंदिरों को बनाने वालों के बारे में ‘हमारी विरासत’ सहित कई बहुत ही सफल डॉक्यूमेंट्री बनाईं।इस डॉक्यूमेंट्री की लोकप्रियता ने भारतीय फिल्म डिवीज़न को भारतीय नृत्य, हस्तशिल्प और संगीत वाद्ययंत्रों पर फिल्मों की एक श्रृंखला बनाने के लिए प्रेरित किया।
हालांकि, वी शांताराम ने अपने करियर को शून्य से शुरू किया – उन्होंने हुबली में एक सिनेमाघर में एक डोर कीपर के रूप में काम किया, जहां वेतन के बजाय उन्हें मुफ्त में फिल्मों को देखने का मौका मिला। ये वो ज़माना था जब उन्होंने दादासाहेब फाल्के की फिल्मों को देखा और फिल्म बनाने में उन्हें रुचि आई।
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डॉक्यूमेंट्री इतिहास के बारे में और जानें
निर्देशक वी शांताराम ने हिंदी और मराठी में कई फिल्में बनाईं। यहां तक कि चार्ली चैपलिन ने भी उनके काम की प्रशंसा की। उन्होंने प्राचीन मंदिरों को बनाने वालों के बारे में ‘हमारी विरासत’ सहित कई बहुत ही सफल डॉक्यूमेंट्री बनाईं।इस डॉक्यूमेंट्री की लोकप्रियता ने भारतीय फिल्म डिवीज़न को भारतीय नृत्य, हस्तशिल्प और संगीत वाद्ययंत्रों पर फिल्मों की एक श्रृंखला बनाने के लिए प्रेरित किया।
हालांकि, वी शांताराम ने अपने करियर को शून्य से शुरू किया – उन्होंने हुबली में एक सिनेमाघर में एक डोर कीपर के रूप में काम किया, जहां वेतन के बजाय उन्हें मुफ्त में फिल्मों को देखने का मौका मिला। ये वो ज़माना था जब उन्होंने दादासाहेब फाल्के की फिल्मों को देखा और फिल्म बनाने में उन्हें रुचि आई।
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रूसी और भारतीय दोनों के दिलों को छूनेवाले ... प्रेमचंद!
सत्य और मानवता को साहित्य का मूल आधार मानने वाले मुंशी प्रेमचंद का जन्म 143 साल पहले, 31 जुलाई 1880 को वाराणसी में हुआ था। प्रेमचंद ने भारतीय साहित्य का मान पूरे विश्व में बढ़ाया!
क्या आप जानते हैं कि रूस में भी लोग बहुत चाव से मुंशी प्रेमचंद की कहानियां पढ़ते हैं? जी हां, प्रेमचंद के लगभग सभी उपन्यासों का रूसी भाषा में अनुवाद किया गया है। क्यों? क्योंकि उनकी कहानियां रूस के एक प्रसिद्ध लेखक मक्सीम गोर्की की कहानियों से बहुत मिलती जुलती हैं। प्रेमचंद रूसी क्रांति के विचारों से भी बहुत प्रभावित थे। इस महान लेखक की जयंती पर उन्हें याद करते हुए हम आपसे पूछना चाहेंगे कि मुंशी प्रेमचंद की कौन सी कहानी आपकी पसंदीदा है? कमेंट्स में हमें ज़रूर बताएं।
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सत्य और मानवता को साहित्य का मूल आधार मानने वाले मुंशी प्रेमचंद का जन्म 143 साल पहले, 31 जुलाई 1880 को वाराणसी में हुआ था। प्रेमचंद ने भारतीय साहित्य का मान पूरे विश्व में बढ़ाया!
क्या आप जानते हैं कि रूस में भी लोग बहुत चाव से मुंशी प्रेमचंद की कहानियां पढ़ते हैं? जी हां, प्रेमचंद के लगभग सभी उपन्यासों का रूसी भाषा में अनुवाद किया गया है। क्यों? क्योंकि उनकी कहानियां रूस के एक प्रसिद्ध लेखक मक्सीम गोर्की की कहानियों से बहुत मिलती जुलती हैं। प्रेमचंद रूसी क्रांति के विचारों से भी बहुत प्रभावित थे। इस महान लेखक की जयंती पर उन्हें याद करते हुए हम आपसे पूछना चाहेंगे कि मुंशी प्रेमचंद की कौन सी कहानी आपकी पसंदीदा है? कमेंट्स में हमें ज़रूर बताएं।
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🚤⛵⛴️ रूसी नौसेना की ताकत!
नौसेना दिवस का जश्न रूस के बंदरगाह शहरों में हज़ारों पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहां लोगों को रूसी नौसेना की सुंदरता और ताकत को देखने का मौका मिलता है, जब विभिन्न प्रकार के रूसी जंगी जहाज, नावें और पनडुब्बियां दर्शकों के सामने परेड करते हैं।
हमारे वीडियो में रूस के सबसे धूम-धाम से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक पर नज़र डालें!
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नौसेना दिवस का जश्न रूस के बंदरगाह शहरों में हज़ारों पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहां लोगों को रूसी नौसेना की सुंदरता और ताकत को देखने का मौका मिलता है, जब विभिन्न प्रकार के रूसी जंगी जहाज, नावें और पनडुब्बियां दर्शकों के सामने परेड करते हैं।
हमारे वीडियो में रूस के सबसे धूम-धाम से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक पर नज़र डालें!
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आइए आपको एक दूसरे जहान में ले चले!
रूस के क्षेत्र का 10% हिस्सा टुण्ड्रा से ढका हुआ है। ये भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग आधा है! ये उत्तरी भूमि दलदलों से भरी हुई है और यहां कोई जंगल नहीं पाए जाते, केवल काई और घास ही देखी जा सकती है। हां पर कहीं-कहीं 1 मीटर लंबे, छोटे पेड़ देखने को मिल जाते हैं। इस क्षेत्र में आप आर्कटिक लोमड़ी, कस्तूरी बैल और बर्फीले उल्लू जैसे अद्भुत जानवरों को देख सकते हैं।
टुण्ड्रा किसी समानांतर ब्रह्मांड से कम नहीं लगता। सोचकर देखिए, वहां रहना कैसा लगता होगा? हमारी फिल्म "टुण्ड्रा मां - सबसे बड़ी योद्धा" में टुण्ड्रा में रहने वाले खानाबदोशों के एक परिवार से मिलें!
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रूस के क्षेत्र का 10% हिस्सा टुण्ड्रा से ढका हुआ है। ये भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग आधा है! ये उत्तरी भूमि दलदलों से भरी हुई है और यहां कोई जंगल नहीं पाए जाते, केवल काई और घास ही देखी जा सकती है। हां पर कहीं-कहीं 1 मीटर लंबे, छोटे पेड़ देखने को मिल जाते हैं। इस क्षेत्र में आप आर्कटिक लोमड़ी, कस्तूरी बैल और बर्फीले उल्लू जैसे अद्भुत जानवरों को देख सकते हैं।
टुण्ड्रा किसी समानांतर ब्रह्मांड से कम नहीं लगता। सोचकर देखिए, वहां रहना कैसा लगता होगा? हमारी फिल्म "टुण्ड्रा मां - सबसे बड़ी योद्धा" में टुण्ड्रा में रहने वाले खानाबदोशों के एक परिवार से मिलें!
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भारतीय रेलवे के शुरुआती दिनों में AC ट्रेनों की बात करना एक सपने जैसे लगता था। 1934 में जब फ्रंटियर मेल की को ठंडा करने की कोशिश की शुरूआत हुई तो रेलवे ने AC यात्रा का पहला सफल प्रयास किया। गाड़ी के कोच को ठंडा करने की ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया गया, जो आज के सिस्टम से बिलकुल अलग था। यात्रा के दौरान प्रचंड गर्मी से बचने के लिए क्या उपाय किए गए, जानिए हमारे एक खास वीडियो से!
ये जानने के लिए कि रूस में ट्रेन कैसी हैं, हमारी डॉक्यूमेंट्री देखें!
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चीन के एक चिड़ियाघर में एक भालू की हरकतों से देखने वाले हैरत में पड़ गए। इंसानों के जैसे हावभाव, इंसानों जैसी चाल और लोगों को रिझाने का तरीका देख, सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो गया। देखने वालों ने शक ज़ाहिर किया और कुछ ने तो ये भी दावा कर दिया कि ये भालू नहीं इंसान ही है! लेकिन फिर चिड़ियाघर के सफाई दी और बताया कि ये भालू ‘सन’ प्रजाति का है जो अकसर ऐसी हरकतें करता है।
ऐसे ही एक मज़ेदार भालू ‘मंसूर’ से हम भी आपको मिलवा सकते हैं। वो रहता तो रूस में है, लेकिन इंटरनेट के जरिये उसके चाहने वाले दुनिया भर में हैं। मंसूर की मज़ेदार कहानी देखिए हमारी दिलचस्प फिल्म में।
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🛤️ दुनिया की सबसे लंबी रेलवे
रूस में एक ऐसा ट्रेन है जो 7 दिनों में 9000 किमी से ज़्यादा दूरी तय करती है। इतना लंबा सफर काफी बोरिंग हो सकता है, तो लोग क्या करते हैं? रोसिया ट्रेन के मुख्य कंडक्टर अलेक्सी बोब्रिंस्की के मुताबिक, "वे अपने साथी यात्रियों, चालक दल और कंडक्टरों से बात करते हैं। इस एक हफ्ते के दौरान हम वास्तव में काफी करीब आ जाते हैं!"
रूस एक विशाल देश है और 20वीं सदी से ही रेलवे ने लोगों को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक जोड़ने में एक अहम भूमिका निभाई है। इन दिनों, दुनिया के सबसे बड़े माल और यात्री परिवहन के लिए रेलवे काफी महत्वपूर्ण है। हमारी अगली कड़ी में, हमारे साथी मैक्सिकन पत्रकार, एरिक फोन्सेका ज़राते, निकल पड़े हैं हमें रूस की अलग-अलग ट्रेनों का सफर करवाने के लिए। इस डॉक्यूमेंट्री को न चूकें!
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रूस में एक ऐसा ट्रेन है जो 7 दिनों में 9000 किमी से ज़्यादा दूरी तय करती है। इतना लंबा सफर काफी बोरिंग हो सकता है, तो लोग क्या करते हैं? रोसिया ट्रेन के मुख्य कंडक्टर अलेक्सी बोब्रिंस्की के मुताबिक, "वे अपने साथी यात्रियों, चालक दल और कंडक्टरों से बात करते हैं। इस एक हफ्ते के दौरान हम वास्तव में काफी करीब आ जाते हैं!"
रूस एक विशाल देश है और 20वीं सदी से ही रेलवे ने लोगों को देश के एक कोने से दूसरे कोने तक जोड़ने में एक अहम भूमिका निभाई है। इन दिनों, दुनिया के सबसे बड़े माल और यात्री परिवहन के लिए रेलवे काफी महत्वपूर्ण है। हमारी अगली कड़ी में, हमारे साथी मैक्सिकन पत्रकार, एरिक फोन्सेका ज़राते, निकल पड़े हैं हमें रूस की अलग-अलग ट्रेनों का सफर करवाने के लिए। इस डॉक्यूमेंट्री को न चूकें!
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क्या आप किस्मत को मानते हैं?
लाखों लोग अपनी तकदीर बदलने की उम्मीद में लॉटरी टिकट खरीदकर अपनी किस्मत आजमाते हैं। अकसर लोगों को इसकी लत लग जाती है जो उनकी और उनके परिवार की ज़िन्दगी को तबाह कर देती है। पर कभी-कभी कम उम्मीद करने पर भी किस्मत खुश हो जाती है। देखें केरल से दिल छू जाने वाली एक ऐसी ही कहानी हमारे विडियो से!
कूड़ा बीनने वालों का जीवन कठिन, कड़ी मेहनत और कई खतरों से भरा होता है। हमारी डॉक्यूमेंट्री में जानें कि कैसे अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए वे हर दिन अपनी जान जोखिम में डालते हैं। साथ ही ये जानें कि कोविड महामारी ने कैसे गरीब तबके के लोगों की कामकाजी स्थितियों को प्रभावित किया।
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लाखों लोग अपनी तकदीर बदलने की उम्मीद में लॉटरी टिकट खरीदकर अपनी किस्मत आजमाते हैं। अकसर लोगों को इसकी लत लग जाती है जो उनकी और उनके परिवार की ज़िन्दगी को तबाह कर देती है। पर कभी-कभी कम उम्मीद करने पर भी किस्मत खुश हो जाती है। देखें केरल से दिल छू जाने वाली एक ऐसी ही कहानी हमारे विडियो से!
कूड़ा बीनने वालों का जीवन कठिन, कड़ी मेहनत और कई खतरों से भरा होता है। हमारी डॉक्यूमेंट्री में जानें कि कैसे अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए वे हर दिन अपनी जान जोखिम में डालते हैं। साथ ही ये जानें कि कोविड महामारी ने कैसे गरीब तबके के लोगों की कामकाजी स्थितियों को प्रभावित किया।
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🥁रुसी संस्कृति से प्यार
अलेक्सांद्रो एड्सो संगीत की शिक्षा हासिल करने अंगोला से चेल्याबिंस्क आए थे। लेकिन रूसी संस्कृति और रूसी रूढ़िवादी चर्च के संपर्क में आने के बाद, उन्होंने बपतिस्मा लेने और एक पादरी के रूप में प्रशिक्षित होने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने चेल्याबिंस्क एपर्कि के दिव्य सेवा पाठ्यक्रमों में दाखिला लिया।
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि सोवियत काल के दौरान भी कई अफ्रीकी लोग रूस आते थे और यहीं पर अपना जीवन बसा लेते थे। उनमें से कुछ लोग अफ्रीकी-अमेरिकी थे जो नस्लीय भेदभाव से बचने के लिए सोवियत संघ चले आए थे। आज, उनके कुछ वंशज रूसी व्यापार और मनोरंजन के उद्योग में प्रमुख हस्तियां हैं। हमारी फिल्म में उन अफ्रीकी अमेरिकियों की कहानियों के बारे में जानें जो सोवियत संघ के शुरुआती दिनों में रूस आ गए थे!
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अलेक्सांद्रो एड्सो संगीत की शिक्षा हासिल करने अंगोला से चेल्याबिंस्क आए थे। लेकिन रूसी संस्कृति और रूसी रूढ़िवादी चर्च के संपर्क में आने के बाद, उन्होंने बपतिस्मा लेने और एक पादरी के रूप में प्रशिक्षित होने का फैसला लिया। इसके लिए उन्होंने चेल्याबिंस्क एपर्कि के दिव्य सेवा पाठ्यक्रमों में दाखिला लिया।
आपको ये जानकर हैरानी होगी कि सोवियत काल के दौरान भी कई अफ्रीकी लोग रूस आते थे और यहीं पर अपना जीवन बसा लेते थे। उनमें से कुछ लोग अफ्रीकी-अमेरिकी थे जो नस्लीय भेदभाव से बचने के लिए सोवियत संघ चले आए थे। आज, उनके कुछ वंशज रूसी व्यापार और मनोरंजन के उद्योग में प्रमुख हस्तियां हैं। हमारी फिल्म में उन अफ्रीकी अमेरिकियों की कहानियों के बारे में जानें जो सोवियत संघ के शुरुआती दिनों में रूस आ गए थे!
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हमारी डॉक्यूमेंट्री ‘टुण्ड्रा मां – सबसे बड़ी योद्धा’ को मलेशिया के ‘वॉक द डॉक 2023 इंटरनेशनल डॉक्यूमेंट्री फेस्टिवल’ का विजेता घोषित किया गया है। इस फेस्टिवल में पर्यावरण, संरक्षण और यात्रा पर बनाई गईं सर्वोत्तम फिल्मों की सराहना की जाती है। येकातेरीना कोज़ाकीना द्वारा लिखित और निर्देशित फिल्म ‘टुण्ड्रा मां – सबसे बड़ी योद्धा’ ‘सर्वश्रेष्ठ फीचर डॉक्यूमेंट्री’ श्रेणी में विजेता बनी। ये फिल्म उन गृहिणियों की कहानियां बयान करती है जो टुंड्रा के कठोर वातावरण में अपने खानाबदोश घरों को आरामदायक बनाती हैं। अगर आपने अभी तक इस फिल्म को नहीं देखा है, तो आप इसे हिन्दी में यहां देख सकते हैं!
इसके अलावा, फेस्टिवल में हमारे फिल्म निर्देशक अर्त्योम वोरोबे ने डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने के ऊपर एक क्लास भी दी। साथ ही साथ वहां नताल्या कादिरोवा की फिल्म ‘बेरिंगिआ: दुनिया की सबसे बड़ी डॉग रेस’ भी दिखाई गई।
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प्रतिबंध बेअसर, रूस की अर्थव्यवस्था मज़बूत!
ताज़ी विश्व अर्थशास्त्र रिपोर्ट से पता चला है कि पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद, 2022 के अंत तक रूस दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक था। साथ ही क्रय शक्ति समानता (PPP) के मामले में यूरोप में सबसे बड़ा था। विश्व बैंक और IMF द्वारा प्रकाशित आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर अनुमान के मुताबिक, पिछले साल के अंत में रूस का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) PPP के हिसाब से $5.51 ट्रिलियन था। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये आंकड़ा $3.993 ट्रिलियन के आधिकारिक अनुमान से 38% बड़ा है। इससे यह भी पता चला कि क्रय-शक्ति समानता (PPP) में मापे जाने पर रूसी अर्थव्यवस्था जर्मनी से भी आगे थी, जर्मनी की GDP $5 ट्रिलियन थी।
पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध किस तरह बेअसर साबित हुए हैं और कैसे रूसी अर्थव्यवस्था और उद्योगपतियों ने इसे एक मौके की तरह देखा, ये जानने के लिए ज़रूर देखिए हमारी खास डॉक्यूमेंट्री “सैंक्शन: आपदा में अवसर”
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ताज़ी विश्व अर्थशास्त्र रिपोर्ट से पता चला है कि पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद, 2022 के अंत तक रूस दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक था। साथ ही क्रय शक्ति समानता (PPP) के मामले में यूरोप में सबसे बड़ा था। विश्व बैंक और IMF द्वारा प्रकाशित आधिकारिक आंकड़ों के आधार पर अनुमान के मुताबिक, पिछले साल के अंत में रूस का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) PPP के हिसाब से $5.51 ट्रिलियन था। रिपोर्ट में कहा गया है कि ये आंकड़ा $3.993 ट्रिलियन के आधिकारिक अनुमान से 38% बड़ा है। इससे यह भी पता चला कि क्रय-शक्ति समानता (PPP) में मापे जाने पर रूसी अर्थव्यवस्था जर्मनी से भी आगे थी, जर्मनी की GDP $5 ट्रिलियन थी।
पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध किस तरह बेअसर साबित हुए हैं और कैसे रूसी अर्थव्यवस्था और उद्योगपतियों ने इसे एक मौके की तरह देखा, ये जानने के लिए ज़रूर देखिए हमारी खास डॉक्यूमेंट्री “सैंक्शन: आपदा में अवसर”
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🎞 क्या आप जानते हैं?
भारत सरकार द्वारा अप्रैल 1948 में फिल्म डिवीज़न का गठन करने के बाद, भारत में सभी सिनेमाघरों में फिल्मों से पहले डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को अनिवार्य बना दिया गया। बाद में, कमर्शियल कंपनियों द्वारा प्रायोजित डॉक्यूमेंट्री भी उनके स्थान पर दिखाई गईं, जिनकी जगह बाद में विज्ञापनों ने ले ली।
💬 क्या आप फिल्मों से पहले विज्ञापनों की बजाय डॉक्यूमेंट्री देखना चाहेंगे?
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भारत सरकार द्वारा अप्रैल 1948 में फिल्म डिवीज़न का गठन करने के बाद, भारत में सभी सिनेमाघरों में फिल्मों से पहले डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग को अनिवार्य बना दिया गया। बाद में, कमर्शियल कंपनियों द्वारा प्रायोजित डॉक्यूमेंट्री भी उनके स्थान पर दिखाई गईं, जिनकी जगह बाद में विज्ञापनों ने ले ली।
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गुरूदेव पर रूस का प्रभाव!
महान कवि, लेखक और दार्शनिक गुरुदेव रबींद्रनाथ ठाकुर की पुण्यतिथि पर हम आज रूस और उनके गहरे रिश्तों को याद कर रहे हैं। 1930 में टैगोर सोवियत संघ की यात्रा पर गए, जहां उनकी मुलाकात प्रसिद्ध रूसी लेखक मैक्सिम गोर्की और सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन से हुई। इन मुलाकातों और रूस की अपनी यात्रा के ज़रिये गुरुदेव ने शांति, एकता और मानवता का संदेश दुनिया भर में प्रसारित किया। अगर आपको भी यात्रा का शौक है तो जुड़िये हमारे साथ और देखिए रूस की प्राकृतिक खूबसूरती, हमारे होस्ट अंतोन की नज़रों से। हमारी फिल्म ‘रूस: 85 रोमांच’ में आपको दिखेगा रूस का वो अनोखा रूप, जो शायद आपने पहले देखा नहीं होगा।
महान कवि, लेखक और दार्शनिक गुरुदेव रबींद्रनाथ ठाकुर की पुण्यतिथि पर हम आज रूस और उनके गहरे रिश्तों को याद कर रहे हैं। 1930 में टैगोर सोवियत संघ की यात्रा पर गए, जहां उनकी मुलाकात प्रसिद्ध रूसी लेखक मैक्सिम गोर्की और सोवियत नेता जोसेफ स्टालिन से हुई। इन मुलाकातों और रूस की अपनी यात्रा के ज़रिये गुरुदेव ने शांति, एकता और मानवता का संदेश दुनिया भर में प्रसारित किया। अगर आपको भी यात्रा का शौक है तो जुड़िये हमारे साथ और देखिए रूस की प्राकृतिक खूबसूरती, हमारे होस्ट अंतोन की नज़रों से। हमारी फिल्म ‘रूस: 85 रोमांच’ में आपको दिखेगा रूस का वो अनोखा रूप, जो शायद आपने पहले देखा नहीं होगा।
भारत का स्वतंत्रता दिवस अब बहुत दूर नहीं है, तो इसी मौके पर हम बहुत ही हर्षोल्लास के साथ आपके लिए एक खास सीरीज़ लेकर आए हैं जो स्वतंत्रता के सार और दोस्ती की ताकत को उजागर करती है। पेश हैं “आज़ादी के रंग, दोस्ती के संग”। तो चलिए हमारे साथ, समय और साझा मूल्यों की इस अद्भुत यात्रा पर। जिसमें हम भारत की आज़ादी के जज़्बे के साथ-साथ, भारत और रूस के बीच की गहरी दोस्ती का जश्न मनाएंगे! 🇮🇳 🤝🇷🇺
जुड़िए हमारे साथ हर दिन, क्योंकि हम बहुत सी अनोखी कहानियों, अनसुने किस्सों और इतिहास में घटी कुछ अद्भुत घटनाओं के सिलसिले को आपके पास ला रहे हैं। ये सभी किस्से-कहानियां, इन दो महान देशों को एक मज़बूत धागे से जोड़ते हैं। कुछ अनोखे ऐतिहासिक पलों से लेकर दिल को छू लेने वाले संबंधों की कहानियों तक, ये सीरीज़ उस अटूट बंधन को समर्पित है जो जीत हो या हार, कामयाबी मिले या चुनौतियां, आज भी उतना ही मज़बूत है जितना दशकों से चला आ रहा है!
इस सीरीज़ से जुड़े सभी दिलचस्प अपडेट जानने के लिए हमें सब्सक्राइब करें! @RTDocumentary_India
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🤝️️ जब स्टालिन ने भगत सिंह को आमंत्रित किया
जैसे-जैसे हम स्वतंत्रता दिवस के महत्वपूर्ण अवसर के करीब आते जा रहे हैं, आइए हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को फिर से याद करें, जिनके आदर्शों और बहादुरी ने हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को आकार दिया। उनमें से, भगत सिंह का नाम हमारे आज के युवाओं के दिलों में भी एक अमिट छाप छोड़ चुका है।
इस वीडियो में, हम 1928 की भगत सिंह के जीवन से जुड़ी दिलचस्प कहानी को पेश कर रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि सोवियत यूनियन के प्रसिद्ध नेता जोसेफ स्टालिन ने भगत सिंह को मास्को आने का विशेष निमंत्रण दिया था। लेकिन सवाल ये है कि क्या भगत सिंह ने ये निमंत्रण स्वीकार किया?
इस ऐतिहासिक यात्रा में हमारे साथ जुड़ें 🇮🇳🤝🇷🇺
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डॉक्यूमेंट्री इतिहास के बारे में और जानें
जैसे-जैसे हम स्वतंत्रता दिवस के महत्वपूर्ण अवसर के करीब आते जा रहे हैं, आइए हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदानों को फिर से याद करें, जिनके आदर्शों और बहादुरी ने हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम की दिशा को आकार दिया। उनमें से, भगत सिंह का नाम हमारे आज के युवाओं के दिलों में भी एक अमिट छाप छोड़ चुका है।
इस वीडियो में, हम 1928 की भगत सिंह के जीवन से जुड़ी दिलचस्प कहानी को पेश कर रहे हैं। ऐसा कहा जाता है कि सोवियत यूनियन के प्रसिद्ध नेता जोसेफ स्टालिन ने भगत सिंह को मास्को आने का विशेष निमंत्रण दिया था। लेकिन सवाल ये है कि क्या भगत सिंह ने ये निमंत्रण स्वीकार किया?
इस ऐतिहासिक यात्रा में हमारे साथ जुड़ें 🇮🇳🤝🇷🇺
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👃 रूसी आदिवासी सूंघ कर करते हैं अलविदा!
रूस के आदिवासी चुक्ची, एक जनजातीय समूह है जो रूस के सुदूर उत्तर-पूर्व के चुकोतका में रहता है। वे बहुत ही कठोर वातावरण में रहते हैं जहां का तापमान गर्मियों में भी 18 डिग्री से ऊपर नहीं जाता। ऐसी कठिन परिस्थितियों में पनपी इन लोगों की परंपराएं और जीवन शैली भी बहुत अनोखे हैं। जैसे, अलविदा कहते वक्त एक-दूसरे को चूमने की बजाय ये लोग सूंघते हैं। वे अपने प्रियजनों की सुगंध को अपनी सांसों में भर लेते हैं जिसे वे तब तक याद रखते हैं जब तक वे दोबारा न मिलें।
चूंकि चुकोतका इतना ठंडा इलाका है, वहां कोई फसल नहीं उगती, इसलिए चुक्ची लोग व्हेल का शिकार करते हैं और उसी के मांस पर ज़िंदा रहते हैं। पुरुष शिकार करने के लिए समुद्र में जाते हैं, और जो भी पकड़ कर लाते हैं वो अपने समुदाय में बांट देते हैं।
हमारी फिल्म “मैं हूं शिकारी” में चुक्ची व्हेल शिकारियों के दिलचस्प जीवन के बारे में और जानें!
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रूस के आदिवासी चुक्ची, एक जनजातीय समूह है जो रूस के सुदूर उत्तर-पूर्व के चुकोतका में रहता है। वे बहुत ही कठोर वातावरण में रहते हैं जहां का तापमान गर्मियों में भी 18 डिग्री से ऊपर नहीं जाता। ऐसी कठिन परिस्थितियों में पनपी इन लोगों की परंपराएं और जीवन शैली भी बहुत अनोखे हैं। जैसे, अलविदा कहते वक्त एक-दूसरे को चूमने की बजाय ये लोग सूंघते हैं। वे अपने प्रियजनों की सुगंध को अपनी सांसों में भर लेते हैं जिसे वे तब तक याद रखते हैं जब तक वे दोबारा न मिलें।
चूंकि चुकोतका इतना ठंडा इलाका है, वहां कोई फसल नहीं उगती, इसलिए चुक्ची लोग व्हेल का शिकार करते हैं और उसी के मांस पर ज़िंदा रहते हैं। पुरुष शिकार करने के लिए समुद्र में जाते हैं, और जो भी पकड़ कर लाते हैं वो अपने समुदाय में बांट देते हैं।
हमारी फिल्म “मैं हूं शिकारी” में चुक्ची व्हेल शिकारियों के दिलचस्प जीवन के बारे में और जानें!
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🤝 भारत-रूस: दिल से जुड़े हैं दोस्ती के तार!
नक्शे पर भले ही मॉस्को और नई दिल्ली दूर हो सकते हैं, लेकिन उनके दिल एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं। दोनों देशों के बीच दोस्ती और समर्थन का एक लंबा इतिहास है।
ये वीडियो उस दोस्ती का जश्न मनाता है जो 52 सालों से चली आ रही है और साथ ही ‘हिंदी-रूसी भाई-भाई’ के नारे को याद करता है। दोनों देशों के बीच ये रिश्ता कैसे बना और इसका क्या प्रभाव पड़ा? इसका गवाह बनने से पक्की तौर पर दोनों देशों के बारे में आपकी जानकारी और बढ़ेगी।
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नक्शे पर भले ही मॉस्को और नई दिल्ली दूर हो सकते हैं, लेकिन उनके दिल एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं। दोनों देशों के बीच दोस्ती और समर्थन का एक लंबा इतिहास है।
ये वीडियो उस दोस्ती का जश्न मनाता है जो 52 सालों से चली आ रही है और साथ ही ‘हिंदी-रूसी भाई-भाई’ के नारे को याद करता है। दोनों देशों के बीच ये रिश्ता कैसे बना और इसका क्या प्रभाव पड़ा? इसका गवाह बनने से पक्की तौर पर दोनों देशों के बारे में आपकी जानकारी और बढ़ेगी।
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🇷🇺 🇮🇳 फौलादी दोस्ती का प्रतीक
आज़ादी के बाद भारत के सामने एक बड़ी चुनौती थी अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना और औद्योगीकरण को बढ़ावा देना। प्राथमिकताओं की लिस्ट में सबसे ऊपर था, एक इस्पात उद्योग को विकसित करना था। इस्पात का इस्तेमाल हर महत्वपूर्ण क्षेत्र में किया जाता है: ऊर्जा, निर्माण, मोटर वाहन और परिवहन, बुनियादी ढांचे, पैकेजिंग और मशीनरी।
झारखंड में स्थित बोकारो स्टील प्लांट भारत में बनने वाला पहला स्वदेशी स्टील प्लांट था, और इसे तैयार होने में पूरे 8 साल लगे। आज तक, बोकारो भारत के प्रमुख औद्योगिक केंद्रों में से एक है।
क्या आप जानते हैं कि बोकारो स्टील प्लांट भारत और रूस के बीच मज़बूत संबंधों की निशानी है? हमारे वीडियो में जानें कि परियोजना में रूस की क्या भूमिका थी!
@RTDocumentary_India के साथ
डॉक्यूमेंट्री इतिहास के बारे में और जानें
आज़ादी के बाद भारत के सामने एक बड़ी चुनौती थी अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना और औद्योगीकरण को बढ़ावा देना। प्राथमिकताओं की लिस्ट में सबसे ऊपर था, एक इस्पात उद्योग को विकसित करना था। इस्पात का इस्तेमाल हर महत्वपूर्ण क्षेत्र में किया जाता है: ऊर्जा, निर्माण, मोटर वाहन और परिवहन, बुनियादी ढांचे, पैकेजिंग और मशीनरी।
झारखंड में स्थित बोकारो स्टील प्लांट भारत में बनने वाला पहला स्वदेशी स्टील प्लांट था, और इसे तैयार होने में पूरे 8 साल लगे। आज तक, बोकारो भारत के प्रमुख औद्योगिक केंद्रों में से एक है।
क्या आप जानते हैं कि बोकारो स्टील प्लांट भारत और रूस के बीच मज़बूत संबंधों की निशानी है? हमारे वीडियो में जानें कि परियोजना में रूस की क्या भूमिका थी!
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डॉक्यूमेंट्री इतिहास के बारे में और जानें
😮💨 ज़िंदगी की भागदौड़ के बीच आराम का दिन!
मॉस्को के चिड़ियाघर के इस प्यारे से स्लॉथ से प्रेरणा लेते हुए, ‘राष्ट्रीय आलसी दिवस’ पर आइए मिलकर आराम फरमाएं। बिलकुल एक पक्के स्लॉथ की तरह ही, जो दिन में 14 घंटे सोता है और इत्मीनान से एक महीने में खाना पचाता है। आप भी इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी से चैन के दो पल चुराकर तरोताज़ा हो जाइए!
रूस में भले ही आपको स्लॉथ देखने को न मिलें पर वहां भालूओं की तादाद बहुत ज़्यादा है। ध्यान दीजिएगा, कहीं कोई सड़क पर न मिल जाए! हमारी इस ‘ डॉक्यूमेंट्री ‘ में मंसूर नाम के एक प्यारे से भालू की अनोखी दुनिया को देखें और जानें।
आपके लिए आराम करने के क्या मायने हैं? अपने पसंदीदा तरीके हमारे साथ साझा करें!
@RTDocumentary_India के साथ डॉक्यूमेंट्री इतिहास के बारे में और जानें
मॉस्को के चिड़ियाघर के इस प्यारे से स्लॉथ से प्रेरणा लेते हुए, ‘राष्ट्रीय आलसी दिवस’ पर आइए मिलकर आराम फरमाएं। बिलकुल एक पक्के स्लॉथ की तरह ही, जो दिन में 14 घंटे सोता है और इत्मीनान से एक महीने में खाना पचाता है। आप भी इस भागदौड़ भरी ज़िंदगी से चैन के दो पल चुराकर तरोताज़ा हो जाइए!
रूस में भले ही आपको स्लॉथ देखने को न मिलें पर वहां भालूओं की तादाद बहुत ज़्यादा है। ध्यान दीजिएगा, कहीं कोई सड़क पर न मिल जाए! हमारी इस ‘ डॉक्यूमेंट्री ‘ में मंसूर नाम के एक प्यारे से भालू की अनोखी दुनिया को देखें और जानें।
आपके लिए आराम करने के क्या मायने हैं? अपने पसंदीदा तरीके हमारे साथ साझा करें!
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